श्री नृसिंह अष्टकम 

ध्यायामि नरसिम्हक्यं ब्रह्म वेदन्तगोचारं ।
भवाब्धि तरनोपयं संख चाकर धरं परम् || १ ||
 
नीलं रामं चा परिभूय कृपा रसेन स्तम्भे स्वसक्ति मनघं विनिधाय देव ।
प्रह्लाद रक्षण विधि यति कृपा ते श्री नरसिंह परिपालय मम च भक्तं || २ ||
 
 
इन्द्रादि देव निकरस्य कीर्त कोटि प्रत्युप्त रत्न प्रति बिम्बित पद पद्म ।
कल्पान्त कला घन गर्जन तुल्य नाद श्री नरसिंह परिपालय मम च भक्तं || ३ ||
 
प्रह्लाद पोष प्रलयर्क समान वक्त्र हूं -कर निर्जिता निसाचर वृन्द नाद ।
श्री -नारद मुनि संघ सुगियमाना श्री नरसिंह परिपालय मम च भक्तं || ४ ||
 
रत्रिन चरद्रि जतरत परिस्रंस्य मन रक्तं निपीय परिकल्पित सान्तर मल ।
विद्रावित -अखिल सुरो उग्र नरसिंह रूपं श्री नरसिंह परिपालय मम चा भक्तं || ५ ||
 
योगीन्द्र, योग परिरक्सक, देव देव दिनार्थि हरि विभव अगम गीयमान ।
मां वीक्ष्य दिनं असरण्यं अगन्य -शिलं श्री नरसिंह परिपालय मम चा भक्तं || ६ ||
 
 
प्रह्लाद सोक विनिवरण भद्र सिंह नकतन चरेन्द्र मद खण्डन वीर सिंह ।
इन्द्रादि देवजना संगनुत पद पद्म श्री नरसिंह परिपालय मम चा भक्तं || ७ ||
 
ज्ञानेन केचित् अवलम्ब्य पदंभुजं थेय, केचित् सुकर्म निकरेण परे चा भक्त्य ।
मुक्तिं गतः खलु जनः कृपय मुरारे श्री नरसिंह परिपालय मम चा भक्तं || ८ ||
 
Narsingh Ashtakam श्री नृसिंह अष्टकम
 

Leave a comment