जगन्नाथ मंदिर की कहानी  

पुरी विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर और सबसे लंबे गोल्डन बीच के लिए प्रसिद्ध है। यह भारत में चार धामों यानी पुरी, द्वारिका, बद्रीनाथ और रामेश्वर में से धामों (पवित्र स्थान का सबसे पवित्र स्थान) में से एक है। पुरी (पुरुषोत्तम क्षेत्र) में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र की पूजा की जाती है।
 
आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाले जाने वाली इस यात्रा में देशभर से सैंकड़ों लोग हिस्सा लेने पहुँचते हैं । भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने घर यानी जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के लिए निकलते हैं ।
 
बता दें, गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। इन विशाल रथों को यात्रा में शामिल सारे लोग मिलकर खींचते हैं। कहा जाता है कि रथ खींचने वाले लोगों के सारे दुख दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

संस्कृत में जगन्नाथ का अर्थ है जग यानी दुनिया और नाथ का अर्थ है भगवान। भगवान जगन्नाथ यानी कृष्ण भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं। 

रथ यात्रा कई पारंपरिक वाद्ययंत्रों की आवाज के बीच बड़े-बड़े रथों को सैकड़ों लोग मोटे-मोटे रस्सों की मदद से खींचते हैं। सबसे पहले बलभद्र जी का रथ प्रस्थान करता, इसके बाद बहन सुभद्रा जी का रथ चलना शुरू होता है और सबसे आखिर में जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकलती है। 
 
यह रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर जाकर संपन्न मानी जाती है। कहा जाता है कि गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। यह वही मंदिर’ है, जहां विश्वकर्मा ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। यह कहा जाता है कि पुरी में भगवान जगन्नाथ शहर में घूमने के लिए निकलते हैं। 
 
पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है। 
 
जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।
 
वहीं पुरी में रथयात्रा का महापर्व 9 दिन तक चलेगा। रथयात्रा से पहले भगवान बीमार हो जाते हैं यानी उन्हें बुखार हो जाता है। ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्‍या तक उन्हें बीमार मानकर उनकी सेवा की जाती है। इस दौरान जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं। 
 
जगन्नाथ मंदिर के रहस्य  ( Jagannath Temple Miracles )
 
बता दें, यूनेस्को द्वारा पुरी के एक हिस्से को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किए जाने के बाद यह पहली रथ यात्रा है। इस बार की रथ यात्रा की थीम भी ‘धरोहर’ है।
 

 

भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कई ऐसी चमत्कारी बातें हैं जो आकर्षण का केन्द्र हैं।

1. आमतौर पर मंदिरों के शिखर पर लगा झंडा जिस दिशा में हवा चलती है उसी तरफ लहराता है, लेकिन जगन्नाथ मंदिर में यह नियम लागू नहीं होता। जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है और ऐसा क्यों है इस बारे में कोई नहीं जानता
 
2. मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी लगा हुआ है। इस चक्र को आप किसी भी दिशा में खड़े होकर देखेंगे तो यह चक्र हमेशा आपके सामने ही दिखाई देता है। 
 
3. भक्तों के लिए प्रसाद तैयार करने के लिए मंदिर की रसोई में सात बर्तन को एक दूसरे के ऊपर रखकर पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर ऊपर से नीचे की तरफ से एक के बाद प्रसाद पकता है।ऐसा दावा किया जाता है कि मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, लेकिन अन्न कभी भी खत्म नहीं होता।
 
4. आप जब किसी मंदिर जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते दिखाई देते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। मंदिर के उपर विमान भी नहीं उड़ते हैं। 
 
5. दिन के किसी भी समय में मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नही दिखाई देती है।
 
6. मंदिर के शिखर पर लगे झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक भी दिन झंडा न बदला तो मंदिर 18 सालो के लिए बंद हो जाएगा।
 
7. सिंहद्वार में प्रवेश करने पर आपको किसी तरह की सागर की लहरों की आवाज नहीं सुनाई देती, लेकिन कदम भर बाहर रखते ही लहरों का संगीत कानों में पड़ने लगता है।

 

जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास

जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास एक आकर्षक कहानी से जुड़ा है। भगवान जगन्नाथ की एक जंगल में गुप्त रूप से भगवान नीला माधबा के रूप में विश्ववासु नामक राजा द्वारा पूजा की गई थी। राजा इंद्रद्युम्न देवता के बारे में और जानने के लिए उत्सुक थे, और इसलिए, उन्होंने एक ब्राह्मण पुजारी, विद्यापति को विश्ववासु के पास भेजा।

विद्यापति के उस स्थान को खोजने के सारे प्रयास व्यर्थ गए। लेकिन, उन्हें विश्ववासु की बेटी ललिता से प्यार हो गया और उन्होंने उससे शादी कर ली। फिर, विद्यापति के अनुरोध पर, विश्ववासु अपने दामाद को आंखों पर पट्टी बांधकर उस गुफा में ले गए जहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की पूजा की।

होशियार विद्यापति ने रास्ते में राई जमीन पर गिरा दी। इसके बाद, राजा इंद्रद्युम्न देवता के पास ओडिशा गए। हालांकि मूर्ति वहां नहीं थी और वे निराश थे, उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को देखने की ठानी।

अचानक एक आवाज ने उन्हें निलसैला पर एक मंदिर बनाने के लिए कहा। बाद में, राजा ने अपने आदमियों को विष्णु के लिए एक सुंदर मंदिर बनाने का आदेश दिया।

राजा ने ब्रह्मा को मंदिर को पवित्र करने के लिए आमंत्रित किया। हालाँकि, ब्रह्मा ध्यान में थे जो नौ साल तक चला। तब तक मंदिर रेत के नीचे दब गया।

राजा चिंतित था और नींद के दौरान, राजा ने एक आवाज सुनी जिसने उसे समुद्र के किनारे एक पेड़ का एक तैरता हुआ लॉग खोजने और उसमें से मूर्तियाँ बनाने का निर्देश दिया। तदनुसार, राजा ने फिर से एक भव्य मंदिर बनवाया और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की छवियों को दिव्य वृक्ष की लकड़ी से बनवाया था ।

श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

मई से जुलाई तक पुरी में मानसून का मौसम रहता है और इसलिए इस दौरान भारी वर्षा होती है। हालांकि, रथ यात्रा जैसे जगन्नाथ पुरी मंदिर के प्रमुख त्योहार इन्हीं महीनों में होते हैं। हालांकि मौसम प्रतिकूल है, आपके पास पुरी के चकाचौंध भरे त्योहारों का हिस्सा बनने का अवसर है।


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