भवानी अष्टकम

जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने भवानी अष्टकम की रचना की है। माँ भगवती के चरणों को समर्पित है यह सुन्दर रचना। यह स्तोत्र भवानी अष्टकम न केवल दिव्य है बल्कि भक्ति और प्रेम से भर देता है।

भवानी अष्टकम लिखने के पीछे की कहानी इस प्रकार है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आदि शंकर भगवान शिव के परम भक्त थे। हालाँकि, उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में कई श्लोक लिखे लेकिन भगवती के बारे में कुछ नहीं लिखा।

एक बार ऐसा हुआ कि जगत गुरु आदि शंकराचार्य बीमार पड़ गया और उसे अत्यधिक प्यास लगी। लेकिन वह खुद पानी का गिलास उठाकर भी पानी का गिलास नहीं उठा सकते थे बह शरीर से इतने कमजोर हो चुके थे। उस समय माता भगवती प्रकट हुई परन्तु लेकिन उनकी मदद नहीं की।

जब गुरु जी ने माता से पूछा कि वह उनके इस रोग का इलाज क्यों नहीं कर रही है। तब माता भवानी ने उत्तर दिया कि अब आपके भगवान शिव कहाँ हैं जिनकी स्तुति में आपने इतनी कविताएँ लिखी हैं।

आप भगवान शिव से मदद मांगें। अंत में, आदि शंकराचार्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और भवानी अष्टकम की रचना हुई | भक्ति का अमृत शक्ति उपासकों तक भी पहुंचना चाहिए। इसलिए उन्होंने यह मनमोहक भवानी अष्टकम लिखा है।

भवानी अष्टकम में माँ भवानी की स्तुति में आठ श्लोक हैं जिसमें माता के कठोर रूप का वर्णन हैं फिर भी दया से भरी हुई हैं। इसके अलावा, मां भवानी जो कोई भी इस स्तोत्र को प्यार और पूरी भक्ति के साथ पढ़ता है, वह शक्ति, स्वास्थ्य और धन प्रदान करता है।

Bhavani Ashtakam in Hindi Meaning

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।1।।

हे भवानी! पिता, माता, भाई बहन, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या और व्यापार – इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे भवानी माँ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मैं केवल आपकी शरण हूँ। (1 ) 

 भवाब्धावपारे महादु:खभीरु:, पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त:।

कुसंसार-पाश-प्रबद्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।।

हे भवानी माँ, मैं जन्म-मरण के इस अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, भवसागर के महान् दु:खों से भयभीत हूँ। मैं पाप, लोभ और कामनाओ से भरा हुआ हूँ तथा घृणायोग्य संसारके (कुसंसारके) बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। हे भवानी! मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो। ( 2 ) 

न जानामि दानं न च ध्यान-योगं, न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्र-मन्त्रम्।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।।

हे भवानी! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानयोग मार्ग का ही मुझे पता है। तंत्र, मंत्र और स्तोत्र का भी मुझे ज्ञान नहीं है। पूजा तथा न्यास योग आदि की क्रियाओं को भी मै नहीं जानता हूँ। हे देवि! हे माँ भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है। ( 3 )

 

 न जानामि पुण्य़ं न जानामि तीर्थं, न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।

न जानामि भक्तिं व्रतं वाSपि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।4।।

हे भवानी माता! मै न पुण्य जानता हूँ, ना ही तीर्थों को, न मुक्ति का पता है न लय का। हे मा भवानी! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञान नहीं है। हे भवानी! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो। ( 4 ) 

 कुकुर्मी  कुसंगी  कुबुद्धि  कुदास:,    कुलाचारहीन:   कदाचारलीन:।

कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।।

मैं कुकर्मी, कुसंगी (बुरी संगति में रहने वाला), कुबुद्धि (दुर्बुद्धि), कुदास(दुष्टदास) और नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ (सदाचार से हीन कार्य), दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि (कुदृष्टि) रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ। हे भवानी! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है। ( 5 )

 प्रजेशं   रमेशं   महेशं  सुरेशं,   दिनेशं    निशीथेश्वरं   वा    कदाचित्।

न जानामि चाSन्यत् सदाSहं शरण्ये, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।।

हे माँ भवानी! मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र को नहीं जानता हूँ। सूर्य, चन्द्रमा,तथा अन्य किसी भी देवता को भी नहीं जानता हूँ। हे शरण देनेवाली माँ भवानी! तुम्हीं मेरा सहारा हो, मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो। ( 6 ) 

 विवादे   विषादे   प्रमादे   प्रवासे,  जले   चाSनले   पर्वते   शत्रुमध्ये।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।।

हे भवानी! तुम विवाद, विषाद में, प्रमाद, प्रवास में, जल, अनल में (अग्नि में), पर्वतो में, शत्रुओ के मध्य में और वन (अरण्य) में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी माँ! मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो। ( 7 ) 

 अनाथो  दरिद्रो  जरा-रोगयुक्तो, महाक्षीणदीन:  सदा  जाड्यवक्त्र:।

विपत्तौ प्रविष्ट: प्रणष्ट: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।। 

हे माता! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी हूँ। मै अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त (विपत्तिओं से घिरा रहने वाला) और नष्ट हूँ। अत: हे भवानी माँ! अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो, मैं केवल आपकी ही शरण हूँ, तूम्हीं मेरा सहारा हो। ( 8 )

 इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्।।


भवानी अष्टकम का जाप करने के लाभ

  • भवानी अष्टकम के नियमित जाप से मन को शांति मिलती है और आपके जीवन से सभी प्रकार की बुराई दूर होती है और आपका स्वस्थ, आप धनवान और समृद्ध बनते है।
  • मां भवानी की विशेष कृपा पाने के लिए महिलाएं इस अष्टकम का पाठ करें और माँ उनके बच्चों का कल्याण भी करेंगी|
  • एक बार जब आप भवानी अष्टकम स्तोत्र का सही ढंग से पाठ कर लेते हैं और संस्कृत के शब्दों और वाक्यांशों के अर्थ को जान लेते हैं, तो आप खुद इस ‘भक्ति रस’ के प्रवाह में बह जायेंगे। आप माँ भवानी की भक्ति में विलीन हो जायेंगे।
  • यह सिर्फ एक प्रार्थना नहीं है; यह साधना है, यह पाठ आपको सत्य-चेतना के शिखर पर ले जायेगा | यह माता की भक्ति का मार्गदर्शक है | 

Bhavani Ashtakam
Bhavani Ashtakam

 

BHAVANI ASHTAKAM MEANING IN ENGLISH

Neither mother, nor father, neither relation, nor friend,

Neither son, nor daughter, neither servant nor husband,

Neither wife, nor knowledge

And neither my occupation,

Are refuges that I can depend, Oh, Bhavani,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani. ||1||

 

I am in this ocean of birth and death,

I am a coward, who dare not face sorrow,

I am filled with lust and sin,

I am filled with greed and desire,

And tied I am, by the this useless life that I lead,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani ||2||

 

I do not know how to give, nor do I know how to meditate,

I do not know tantra, nor do I know stanzas of prayer,

I do not know how to worship, nor do I know the art of yoga,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani ||3||

 

I do not know how to be righteous,

I do not know the way to the sacred places,

I do not know methods of salvation,

I do not know how to merge my mind with God,

I do not know the art of devotion,

I do not know how to practice austerities, Oh, mother,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani ||4||

 

I perform bad actions, I keep bad company,

I think bad and sinful thoughts, I serve bad masters,

I belong to a bad family, I am immersed in sinful acts,

I see with bad intentions, I write bad words,

Always and always, you are my refuge and my only refuge, Bhavani. ||5||

 

Neither Do I know the creator,

Nor the Lord of Lakshmi

Neither do I know the lord of all,

Nor do I know the lord of devas,

Neither do I know the God who makes the day,

Nor the God who rules at night,

Neither do I know any other Gods,

Oh, Goddess to whom I bow always,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani ||6||

 

While I am in a heated argument,

While I am immersed in sorrow,

While I am suffering an accident,

While I am travelling far off,

While I am in water or fire,

While I am on the top of a mountain,

While I am surrounded by enemies,

And while I am in a deep forest,

Oh Goddess, I always bow before thee,

So you are my refuge and my only refuge, Bhavani ||7||

 

While being an orphan,

While being extremely poor,

While affected by disease of old age,

While I am terribly tired,

While I am in a pitiable state,

While I am being swallowed by problems,

And While I suffer serious dangers,

I always bow before thee, 

So you are my refuge and only refuge, Bhavani ||8||

bhavani ashtakam

FAQs

  1. <strong>भवानी अष्टकम पढ़ने से क्या लाभ होता है?</strong>

    भवानी अष्टकम पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है

  2. <strong>भवानी अष्टकम के रचयिता कौन थे?<br></strong>

    भवानी अष्टकम जगत गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक भजन है


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