श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनामावली 


।। पूर्व-पीठिका ।।
 
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से –
 
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ।
 
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ –
 
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए ।
 
 
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र हूं मैं बतलाता,
 
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता ।
 
।। ध्यान ।।
 
सात्विकः-
 
बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,
 
घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,
 
 दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,
 
भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।
 
 
 कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,
 
रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।
 
राजसः-
 
 नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,
 
रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।
 
 नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,
 
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।
 
 
 रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,
 
ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।
 
तामसः-
 
तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,
 
पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।
 
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,
 
अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।
 
 
दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,
 
भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।
 
 
।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।। 
 
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
 
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
 
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
 
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
 
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
 
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
 
 
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
 
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
 
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
 
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
 
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
 
 
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
 
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
 
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
 
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
 
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
 
 
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
 
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
 
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
 
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
 
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
 
 
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
 
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
 
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
 
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
 
 
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम  
 
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
 
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,
 
जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,
 
जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं । 
 
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
 
 
।। फल-श्रुति ।।
 
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
 
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
 
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
 
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
 
 
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
 
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
 
 
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
 
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

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