सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी

 
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर का नाम है। 

यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के  महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे  भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है। 

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
 
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का फोटो
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं बल्कि इस पूरी पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। 

शिव पुराण के अनुसार चन्द्रमा, राजा दक्ष प्रजापति के दामाद थे और उनका विवाह दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से हुआ था। 

चन्द्रमा रोहिणी नाम की बेटी से सबसे अधिक  प्यार करते थे और यह कारण राजा दक्ष की बाकि  बेटियों पर ध्यान नहीं देते थे। 

इससे क्रोधित होकर राजा दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दिया था ।  

जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर शिव की तपस्या  कर  श्राप से मुक्ति पाई थी। 

ऐसा भी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। 
 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर पर आक्रमण 

 
विदेशी लुटेरों के आक्रमणों के कारण यह मंदिर  17 बार नष्ट किया जा चुका है। 

इसको जितनी बार नष्ट किया उतनी बार ही इसका पुनःनिर्माण भी किया गया । 

यह मंदिर हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी आस्था का प्रतीक है ।
 
सोमनाथ मंदिर सबसे पहले  किस समय  बना इसके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर फिर भी यह जानकारी जरूर प्राप्त है कि 649 ईसवी में इसे वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने इसका पुननिर्माण करवाया  था।  
 
725 ईसवी में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल – जुनैद ने तुड़वा दिया था । 815 ईस्वी में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इस मंदिर को दोबारा बनवाया। 

सन 1024 ईस्वी में महमूद ग़ज़नवी ने अपने 5 हज़ार साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और 25 हज़ार लोगों को कत्ल करके मंदिर की सारी धन  दौलत लूट के ले गया था ।
 
महमूद के मंदिर लूटने की घटना के  बाद राजा भीमदेव ने पुनः उसे  बनवाया । सन् 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर की प्रतिष्ठा और उसके पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया। 

1168 ई. में विजयेश्वर कुमारपल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर का सौन्दर्यीकरण करवाया था।
 
सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर फिर से धवस्त कर दिया। 

उसने पवित्र शिवलिंग को भी खंडित कर दिया तथा सारी धन – दौलत लूट ली थी ।
 
मंदिर को हिंदु राजाओं द्वारा बनवाने और मुस्लिम राजाओं द्वारा उसे तोड़ने का क्रम जारी रहा। 

सन 1395 ईसवी में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को जम कर लूटा इसके बाद 1413 ईसवी में उसके पुत्र अहमदशाह ने भी यही किया।
 
औरंगज़ेब के काल में सोमंथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को दो बार तोड़ा गया, पहली बार 1665 ईसवी में और दूसरी बार 1706 ईसवी में। 

1665 ईसवी में मंदिर को तुड़वाने के बाद जब औरंगज़ेब के देखा कि हिंदु अब भी उस स्थान पर पूजा – अर्चना करने आते है तो उसने 1706 ईसवी में वहां दुबारा हमला करवाया और लोगों को कत्ल कर दिया गया।
 
भारत का बड़ा हिस्सा जब मराठों के अधिकार में आ गया तो सन 1783 में इन्दौर की मराठा रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।
 
भारत को आजादी मिलने के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने जूनागढ को 9 नवम्बर 1947 को पाकिस्तान से आजाद कराया। 

उन्होंने सोमनाथ का दौरा किया और समुद्र का जल लेकर नए मंदिर का संकल्प किया। उनके संकल्प के बाद 1950 मंदिर का पुन: निर्माण हुआ।
 
1951 में भारत के पहले राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने मंदिर में ज्योर्तिलिंग की स्थापना की तथा यह मंदिर 1962 में पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ।
 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण किसने किया

 
यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। 

अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। 

वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। 

मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। 

लोक कथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। 

सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। 

यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। 

इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। 

इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडपतीन प्रमुख भागों में विभाजित है। 

इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। 
 

इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्‍भुत साक्ष्य माना जाता है। 


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