शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव के परम भक्त रावण द्वारा रची गयी एक विशेष स्तुति है, यह स्तुति छन्दात्मक है और इसमें बहुत सारे अलंकार है। अपनी शक्ति के अहंकार में रावण ने जब कैलाश पर्वत अपनी भुजा से उठाने की कोशिश की थी तब शिव जी ने अपने पाँव केअंगूठे से कैलाश को दबा दिया।

फलस्वरूप कैलाश तो हिला नहीं पर रावण का हाथ दब गया, रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए जो स्तुति की, वह रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र कहलाय। जहां रावण का हाथ दबा था, वह स्थान आज भी कैलाश मानसरोवर यात्रा में राक्षस ताल के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।

शिव तांडव स्तोत्र रावण कृत

 
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
 
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
 
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी_
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
 
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
 
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
 
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
 
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
 
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥
 
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
 
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥
 
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् |
 
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥
 
करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्_
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
 
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
 
नवीनमेघमण्डली निरुद्‍धदुर्धरस्फुरत्_
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
 
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
 
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा_
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
 
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥
 
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी_
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
 
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
 
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजङ्गमश्वसद्_
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
 
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल_
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
 
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्_
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
 
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥
 
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् ।
 
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
 
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
 
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥
 
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
 
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥
 
इति श्री रावण कृतम् शिव तांडव स्तोत्र स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
 
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शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

अर्थ –जिनशिव की सघन वन रुपी जटा से प्रवाहित होकर गंगाजी की धाराए उनके कंठ को प्रक्षालित होती है। जिनके गले में बड़े एवम लंबे सर्पो की मालाए लटक रही है। तथा जो शिव डम-डम डमरू बजा रहे है, और डमरू बजाकर प्रचंड तांडव करते है, वे शिवजी हमारा कल्याण करे। ( १ )

अर्थ –जिन शिवजी की जटाओ में अति वेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शीश पर लहरा रही है। जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धुधक-धुधक कर प्रज्वल्लित हो रही है, उन बाल चन्द्रमा विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे। ( २ )

अर्थ –जो पर्वत राज की पुत्री पार्वती जी के विलास में रमणीय कटाक्ष में परम आनंदचित्त रहते है। जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि तथा प्रणिगण वास करते है तथा जिनकी भक्ति मात्र से भक्तजन की समस्त विपत्तिया दूर हो जाती है, ऐसे दिगम्बर(आकाश को वस्त्र सामान धारण करनेवाले) शिवजी मेरी आराधना से मेरा चित सर्वदा आनंदित रहे। ( ३ )

अर्थ –में उन शिवजी की भक्ति में आनंदित रहु, जो सभी प्राणिओ के आधार एवं रक्षक है। जिनकी जटाओ में लिपटे सर्पो की फन की माणिओ का पिले वन प्रभा समूह रूप केसर प्रकाश सभी दिशाओ को प्रकाशित करता है। और जो गज चर्म से विभूषित है। ( ४ )

अर्थ – जिन शिवजी के चरण इंद्र आदि देवताओ के मस्तक के फूलो की धुल से वंचित है जिनकी जटा पर लाल सर्प बिराजमान है। वो चंद्रशेखर चिरकाल के लिए हमे संपदा दे। ( ५ )

अर्थ – जिन शिवजी ने इंद्र आदि देवताओ का गर्व दहन करते हुवे, कामदेव को अपने विशाल मस्तक के अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया था। तथा जो सभी देवो के द्वारा पूज्य है। तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा शुशोभित है। वे देव हमे सिद्धि प्रदान करे। ( ६ )

अर्थ – जिन्होंने अपने विकराल ललाट पर धक् धक् जलती हुई प्रचंड अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था। गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे। ( ७ )

अर्थ – जिनके कंठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए अंधकार के समान कालिमा अंकित है।जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, वे संसार भार को धारण करने वाले चन्द्रमा के समान मनोहर कांतिवाले भगवान गंगाधर मेरी संपत्ति का विस्तार करें। ( ८ )

अर्थ – जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव ( संसार ), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ। ( ९ )

अर्थ – जो अभिमान रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ। ( १० )

अर्थ – जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है। धीमे धीमे बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल स्वर के साथ जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है , उन भगवान शंकर की जय हो। ( ११ )

अर्थ – पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ? ( १२ )

अर्थ – सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों को त्यागकर गंगा जी के तटवर्ती वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा ? ( १३ )

अर्थ – जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही भगवान शंकर की भक्ति प्राप्त कर लेता है। वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि शिव जी का ध्यान चिंतन मोह का नाश करने वाला है। ( १४ )

अर्थ – सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाये हुए इस शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली संपत्ति प्रदान करते हैं। काल शिव पूजन के अंत में शिव तांडव स्त्रोत के गान से लक्ष्मीजी सदा स्थिर रहती है। ( १५ )


शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ इतना प्रभावी है कि इसके पाठ से रावण ने कैलाश पति से विशेष कृपा और शक्तियां हासिल की थीं। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ बेहद चमत्कारी और कल्याणकारी है।
  • शिव तांडव स्तोत्र शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है। कर्ज समाप्त होता है।
  • शिव तांडव स्तोत्र शिव तांडव स्तोत्र अपने आप में पूर्ण और अत्यंत चमत्कारिक धन प्रदायक स्तोत्र है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ करने से समस्त सुख, धन, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को भौतिक जीवन में कोई अभाव नहीं रह जाता है।
  • प्रत्येक मनुष्य और खासकर गृहस्थ व्यक्ति को शिव तांडव स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए। इससे गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। परिवार में खुशहाली और समृद्धि आती है। दांपत्य जीवन में प्रेम और आपसी समझ विकसित होती है। इसका पाठ पति-पत्नी दोनों को करना चाहिए।

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