गणपति जी की आरती 

गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा में सब विघ्न टरे ।
तीन  लोक तैंतीस  देवता द्वार खड़े सब अर्ज़ करें ।।
 
रिद्धि सिद्धि दक्षिण बाम विराजे आनंद सौं शहर चंवर डूरें । 
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जय कार करें ।।
 
गुड़ के मोदक भोग लगत हैं मूषक वाहन चढे सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विघ्न भाग जा दूर परें ।।
 
भादों मॉस शुकल चतुर्थी दोपारा भरपूर परें ।
लियो जनम गणपति प्रभु ने दुर्गा मन्न आनंद भरें ।।
 
श्रीशंकर के आनंद उपजयो नाम सुमरया सब विघ्न टरे ।
आन विधाता बैठे आसन इंद्रा अप्सरा नृत्य करे ।।
 
देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करे ।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चंद्रदेव को कलाहीन तत्काल करें ।।
 
चौदह लोक में फ़िरे गणपति तीन लोक में राज्य करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फ़िरे ।।
 
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी नीर विघ्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ।।
 
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