अर्द्धनारीश्वर शिव - ArdhNarishwar Shiv
शिव महापुराण में उल्लेख आता हैं कि- ‘शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी ।’
अर्थात्– समस्त पुरुष भगवान शिव के अंश और समस्त स्त्रियां माता भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त हैं ।
शक्ति के साथ शिव सब कुछ करने में समर्थ हैं, लेकिन शक्ति के बिना शिव स्पन्दन भी नहीं कर सकते । अत: ब्रह्मा, विष्णु,देवी , देवता आदि सबकी आराध्या परम शिव शक्ति को कोई भी पापी व्यक्ति प्रणाम या स्तवन नहीं कर सकता । बड़े बड़े पुण्य से ही शिव शक्ति की स्तुति का पुण्य संयोग मिलता है ।
शिव पुराण, नारद पुराण सहित दूसरे अन्य पुराण में भी इन बातों का उल्लेख है कि अगर शिव और माता पार्वती इस स्वरूप को धारण नहीं करते तो सृष्टि पर जीवन का सृजन नहीं हो पाता ।
शिव की शक्ति और सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ी है भगवान अर्धनारीश्वर के अवतार की कथा. शिव ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर अवतार और सृष्टि की उत्पत्ति से क्या है इनका संबंध.
भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है। भगवान शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वे इस रूप के जरिए लोगों को संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान हैं।
भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में शिव का आधा शरीर स्त्री और आधा शरीर पुरुष का है।
शिव का यह अवतार स्त्री और पुरुष की समानता को दर्शाता है। समाज, परिवार और जीवन में जितना महत्व पुरुष का है उतना ही स्त्री का भी है।
एक बार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का काम समाप्त किया। तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनाई है उसमें विकास की गति नहीं है। जीतने पशु-पक्षी और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है, उनकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिए ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप भगवान शिव की आराधना करें। वही आपको इसका उपाय बताएंगे।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिव की तपस्या शुरू कर दी। इससे भगवान शिव प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया।
ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से पूछा कि मौथुनी सृष्टि कैसी होगी? ब्रह्मा जी को मौथुनी सृष्टि का रहस्य समझने के लिए भगवान शिव ने पाने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया। इसके बाद नर और नारी भाग अगल हो गए।
ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे। इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिव यानि शिव के नारी स्वरूप ने अपने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया।
इसके बाद अर्धनारीश्वर स्वरूप एक होकर फिर से पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गए।
फिर मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।
श्री शङ्कराचार्य कृतं - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र॥ Ardhnarishwar stotra
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ १ ॥
अर्थात्–आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं । भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ २ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है । पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ३ ॥
अर्थात्–भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है । पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ४ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ५ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ६ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ७ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ८ ॥
अर्थात्– पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
स्तोत्र पाठ का फल - Ardhnarishwar stotra benefits
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ॥ ९ ॥
अर्थात्– पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
![]() |
अर्धनारीश्वर |
0 टिप्पणियां