शिव मंदिर में नंदी के कानों में क्यों कही जाती है मनोकामनाएं
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अगर आप कभी शिव मंदिर गए होंगे, तो ज़रूर ध्यान दिए होंगे कि लोग भगवान शिव के साथ-साथ उनके सामने बैठे नंदी की पूजा करते हैं और साथ ही उनके कानों में अपनी-अपनी मनोकामनाएं भी बोलते हैं। यह एक तरह की परंपरा सी बन गई है, जिसपर लोगों की आस्था और विश्वास बना हुआ है।
भगवान शिव के अवतार हैं नंदी
भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक है नंदी। भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय भी शिव के गण हैं। माना जाता है कि प्राचीन कालीन किताब कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे।
दरअसल, शिलाद नाम के एक मुनि हुआ करते थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव को खुश कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र की मांग की। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को यह वरदान भी दे दिया। वहीं, एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे तभी उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रख दिया।
एक दिन की बात है जब मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आ पहुंचे। उन्होंने बताया कि नंदी जो है वह अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी महादेव की आराधना करने में जुट गए।
नंदी की अराधना से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट भी हुए , साथ ही कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? बस यह बात कहकर भगवान शिव ने नंदी का अपना गणाध्यक्ष बना लिया।
नंदी किसके हैं प्रतीक
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतिक माने जाते हैं। नंदी का हर क्षण भगवान शिव को ही समर्पित है और वह सारे मनुष्य को भी यही शिक्षा देते हैं कि वह अपना हर समय भगवान शिव को ही अर्पित करता रहे बाकि भगवान उसका ध्यान ज़रूर से रखेंगे और आपकी हर छोटी व बड़ी इच्छाएं पूरी करेंगे।
सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेष भी है ।
जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है।
यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है।
शिव मंदिर जाए तो ना भूलें यह बातें
अब जब आप कभी भगवान शिव के मंदिर जाते हैं तो भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ नंदी की भी पूजा करना ना भूलें। नंदी की पूजा बड़े ही प्रेम से और सच्चे दिल से करें और साथ ही मंदिर से लौटते समय नंदी के कानों में अपनी मनोकामनाएं ज़रूर कहेंं… देखिएगा आपकी मनोकामनाएं अवश्य बहुत जल्दी पूरी हो जाएगी।