अमरनाथ यात्रा का इतिहास - कब किया जाते है बाबा बर्फानी के दर्शन ?
अमरनाथ गुफा एक हिन्दू तीर्थ स्थान है जो भारत के जम्मू कश्मीर में स्थित है।
अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
हिन्दू धर्म में इस तीर्थ स्थान का काफी महत्त्व है और हिन्दुओ में अमरनाथ तीर्थ स्थान को सबसे पवित्र भी माना जाता है।
अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
हिन्दू धर्म में इस तीर्थ स्थान का काफी महत्त्व है और हिन्दुओ में अमरनाथ तीर्थ स्थान को सबसे पवित्र भी माना जाता है।
केदारनाथ से आगे है अमरनाथ और उससे आगे है कैलाश पर्वत।
कैलाश पर्वत शिवजी का मुख्य समाधिस्थ होने का स्थान है तो केदारनाथ विश्राम भवन।
हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है। बाबा अमरनाथ को आजकल स्थानीय मुस्लिम लोगों के प्रभाव के कारण 'बर्फानी बाबा' कहा जाता है, जो कि अनुचित है।
उन्हें बर्फानी बाबा इसलिए कहा जाता है कि उनके स्थान पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है।
कैलाश पर्वत शिवजी का मुख्य समाधिस्थ होने का स्थान है तो केदारनाथ विश्राम भवन।
हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है। बाबा अमरनाथ को आजकल स्थानीय मुस्लिम लोगों के प्रभाव के कारण 'बर्फानी बाबा' कहा जाता है, जो कि अनुचित है।
उन्हें बर्फानी बाबा इसलिए कहा जाता है कि उनके स्थान पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है।
शिवलिंग का निर्मित होना समझ में आता है, लेकिन इस पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है।
पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता सती के कंठ का निपात हुआ था।
पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है।
यहां माता के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ हैं, जहां प्राचीनकाल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे और वहां जाकर वे तपस्या करते थे।
लेकिन आजकल यात्रा सुविधाएं सुगम होने के चलते व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगा है।
पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता सती के कंठ का निपात हुआ था।
पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है।
यहां माता के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ हैं, जहां प्राचीनकाल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे और वहां जाकर वे तपस्या करते थे।
लेकिन आजकल यात्रा सुविधाएं सुगम होने के चलते व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगा है।
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Amarnath Shivling |
इस गुफा के चारो तरफ बर्फीली पहाड़ियाँ है। बल्कि यह गुफा भी ज्यादातर समय पूरी तरह से बर्फ से ढंकी हुई होती है|
साल में एक बार इस गुफा को श्रद्धालुओ के लिये खोला भी जाता है।
हजारो लोग रोज़ अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिये आते है और गुफा के अंदर बनी बाबा बर्फानी बर्फ का शिवलिंग की पूजा करते है ।
इतिहास में इस बात का भी जिक्र किया जाता है की, महान शासक आर्यराजा कश्मीर में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा करते थे।
रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है।
कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, बनालिंग और दुसरे पवित चिन्हों को मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे।
अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुवात प्रजाभट्ट द्वारा की गयी थी।
इसके साथ-साथ इतिहास में इस गुफा को लेकर कयी दुसरे कथाए भी मौजूद है।
रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है।
कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, बनालिंग और दुसरे पवित चिन्हों को मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे।
अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुवात प्रजाभट्ट द्वारा की गयी थी।
इसके साथ-साथ इतिहास में इस गुफा को लेकर कयी दुसरे कथाए भी मौजूद है।
Amarkatha Amarnath Dham
अमरकथा : इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था।इस तत्वज्ञान को 'अमरकथा' के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम 'अमरनाथ' पड़ा।
यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।
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Amarnath Yatra Trek |
अमरनाथ कथा : सती ने दूसरा जन्म हिमालयराज के यहां पार्वती के रूप में लिया।
पहले जन्म में वे दक्ष की पुत्री थीं तथा दूसरे जन्म में वे दुर्गा बनीं।
पहले जन्म में वे दक्ष की पुत्री थीं तथा दूसरे जन्म में वे दुर्गा बनीं।
पार्वती बोली, ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। मैं भी अजर-अमर होना चाहती हूं?'
एक बार देवी पार्वती ने देवों के देव महादेव से पूछा, ऐसा क्यों है कि आप अजर हैं, अमर हैं लेकिन मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर, फिर से बरसों तप के बाद आपको प्राप्त करना होता है ।
जब मुझे आपको पाना है तो मेरी तपस्या और इतनी कठिन परीक्षा क्यों?
आपके कंठ में पडी़ नरमुंड माला और अमर होने के रहस्य क्या हैं?
जब मुझे आपको पाना है तो मेरी तपस्या और इतनी कठिन परीक्षा क्यों?
आपके कंठ में पडी़ नरमुंड माला और अमर होने के रहस्य क्या हैं?
भगवान शंकर ने बताया, ‘पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं।’
अब सवाल यह था कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए|
अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए वे सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया।
तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया।
शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया।
प्रिय पुत्र श्री गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया।
फिर पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पांचों तत्वों का परित्याग किया।
सबकुछ छोड़कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।
कोई तीसरा प्राणी, यानी कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर घुस कथा को न सुन सके इसलिए उन्होंने चारों ओर अग्नि प्रज्जवलित कर दी।
फिर महादेव ने जीवन के गूढ़ रहस्य की कथा शुरू कर दी।
शुकदेव : जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (हरा कठफोड़वा या हरी कंठी वाला तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था।
पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी।
पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकारी भरना प्रारंभ कर दिया।
पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी।
पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकारी भरना प्रारंभ कर दिया।
जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा।
शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा।
भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया।
वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए।
शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा।
भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया।
वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए।
गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।
जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली।
यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली।
यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
पवित्र युगल कबूतर : श्री अमरनाथ की यात्रा के साथ ही कबूतरों की कथा भी जुड़ी हुई है।
इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे।
महादेव ने उनको श्राप दे दिया कि तुम दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहो। तदुपरांत वे रुद्ररूपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया।
माना जाता है कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं दोनों कबूतरों के भी दर्शन होते हैं।
यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे?
यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे।
महादेव ने उनको श्राप दे दिया कि तुम दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहो। तदुपरांत वे रुद्ररूपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया।
माना जाता है कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं दोनों कबूतरों के भी दर्शन होते हैं।
यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे?
यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- 'प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहती हूं।
मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?'
मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?'
सदाशिव भोलेनाथ बोले, ‘देवी! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई।
इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई।
इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, परंतु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।’
इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई।
इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, परंतु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।’
इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए।
सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि 'हमें मृत्यु बाधा करती है।
आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे।'
सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि 'हमें मृत्यु बाधा करती है।
आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे।'
‘मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा’, कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतारकर निचोड़ा और देवगणों से बोले, ‘यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।'
उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र अमृत की धारा बह निकली और वही धारा बाद में अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई।
चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े।
चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े।
पावन गुफा में जो भस्म है, वे इसी अमृत बिंदु के कण हैं, जो पृथ्वी पर गिरे थे।
सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए।
देवगण सदाशिव को जलस्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।
सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए।
देवगण सदाशिव को जलस्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।
भोलेनाथ ने देवताओं से कहा, ‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है।
इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ।
आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।'
इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ।
आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।'
देवताओं को ऐसा वर देकर सदाशिव उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे।
भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।
भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।
पवित्र गुफा की खोज
कहा जाता है की मध्य कालीन समय के बाद, 15 वी शताब्दी में दोबारा धर्मगुरूओ द्वारा इसे खोजने से पहले लोग इस गुफा को भूलने लगे थे।
इस गुफा से संबंधित एक और कहानी भृगु मुनि की है।
बहुत समय पहले, कहा जाता था की कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कुई नदियों का बहाव किया था।
इसीलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे।
इसके बाद जब लोगो ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा |
अब हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान अमरनाथ के दर्शन के लिये आते है।
बहुत समय पहले, कहा जाता था की कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कुई नदियों का बहाव किया था।
इसीलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे।
इसके बाद जब लोगो ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा |
अब हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान अमरनाथ के दर्शन के लिये आते है।
शिवलिंग - Amarnath Shivling
40 मीटर ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है।
हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है।
यह गुफा मई से अगस्त तक बर्फ की बनी हुई होती है क्योकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमें देखने को मिलती है।
इन महीने के दरमियाँ ही शिवलिंग का आकर दिन ब दिन कम होते जाता है।
कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है।
लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।
हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है।
यह गुफा मई से अगस्त तक बर्फ की बनी हुई होती है क्योकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमें देखने को मिलती है।
इन महीने के दरमियाँ ही शिवलिंग का आकर दिन ब दिन कम होते जाता है।
कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है।
लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।
हिन्दू महात्माओ के अनुसार, यह वही गुफा है जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के महत्त्व के बारे में समझाया था।
दूसरी मान्यताओ के अनुसार बर्फ से बना हुआ पत्थर पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरी मान्यताओ के अनुसार बर्फ से बना हुआ पत्थर पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का का प्रतिनिधित्व करता है।
अमरनाथ गुफा के लिए रास्ता –Amarnath Yatra Trek
भक्तगण श्रीनगर या पहलगाम से पैदल ही यात्रा करते है।
इसके बाद की यात्रा करने के लिये तक़रीबन 5 दिन लगते है।
इसके बाद की यात्रा करने के लिये तक़रीबन 5 दिन लगते है।
राज्य यातायात परिवहन निगम और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर रोज़ जम्मू से पहलगाम और बालताल तक की यात्रा सेवा प्रदान करते है।
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से प्राइवेट टैक्सी भी हम कर सकते है।
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से प्राइवेट टैक्सी भी हम कर सकते है।
उत्तरी रास्ता तक़रीबन 16 किलोमीटर लंबा है लेकिन इस रास्ते पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है।
यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और डोमिअल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है।
उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावाथी नदी भी देखने को मिलती है जो अमरनाथ ग्लेशियर से जुडी हुई है।
यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और डोमिअल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है।
उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावाथी नदी भी देखने को मिलती है जो अमरनाथ ग्लेशियर से जुडी हुई है।
कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे।
चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था।
महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था।
इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ना वहाँ तांडव नृत्य किया था। और अंत में भगवान देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।
चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था।
महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था।
इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ना वहाँ तांडव नृत्य किया था। और अंत में भगवान देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।
हिन्दुओ के लिये यहाँ भगवान अमरनाथ बाबा का मंदिर प्रसिद्ध और पवित्र यात्रा का स्थान है।
कहा जाता है की 2011 में तक़रीबन 635, 000 लोग यहाँ आये थे, और यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है।
श्रद्धालु हर साल भगवान अमरनाथ के 45 दिन के उत्सव के बीच उन्हें देखने और दर्शन करने के लिये पहुचते है।
ज्यादातर श्रद्धालु जुलाई और अगस्त के महीने में श्रावणी मेले के दरमियाँ ही आते है, इसी दरमियाँ हिन्दुओ का सबसे पवित्र श्रावण महिना भी आता है।
कहा जाता है की 2011 में तक़रीबन 635, 000 लोग यहाँ आये थे, और यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है।
श्रद्धालु हर साल भगवान अमरनाथ के 45 दिन के उत्सव के बीच उन्हें देखने और दर्शन करने के लिये पहुचते है।
ज्यादातर श्रद्धालु जुलाई और अगस्त के महीने में श्रावणी मेले के दरमियाँ ही आते है, इसी दरमियाँ हिन्दुओ का सबसे पवित्र श्रावण महिना भी आता है।
अमरनाथ की यात्रा जब शुरू होती है तब इसे भगवान श्री अमरनाथजी का प्रथम पूजन भी कहा जाता है।
पुराने समय में गुफा की तरफ जाने का रास्ता रावलपिंडी (पकिस्तान) से होकर गुजरता था लेकिन अब हम सीधे ट्रेन से जम्मू जा सकते है|
जम्मू को भारत का विंटर कैपिटल (ठण्ड की राजधानी) भी कहा जाता है। इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है।
ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके। लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है।
जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस सेवा भी उपलब्ध है।
पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है।
वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है।
इसीके साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है।
कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन।
जम्मू को भारत का विंटर कैपिटल (ठण्ड की राजधानी) भी कहा जाता है। इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है।
ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके। लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है।
जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस सेवा भी उपलब्ध है।
पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है।
वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है।
इसीके साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है।
कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन।
अमरनाथ यात्रा आयोजक –
अधिकारिक तौर पे, यात्रा का आयोजन राज्य सरकार श्री अमरनाथ यात्रा बोर्ड के साथ मिलकर करती है।
सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान लगने वाली सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमे कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल है।
सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान लगने वाली सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमे कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल है।
अमरनाथ हिंदी के दो शब्द “अमर” मतलब “अनश्वर” और “नाथ” मतलब “भगवान” को जोड़ने से बनता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे।
तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाये और यही भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे।
तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाये और यही भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
सुरक्षा –Security Arrangements at Amarnath Yatra
हर साल हजारो सेंट्रल और राज्य सरकार के पुलिस कर्मी श्रद्धालुओ की सुरक्षा में तैनात रहते है।
जगह-जगह पर सेनाओ के कैंप भी लगे हुए होते है।
जगह-जगह पर सेनाओ के कैंप भी लगे हुए होते है।
सुविधाए – Facilities at Amarnath Yatra
गुफा के रास्ते में बहुत सी समाजसेवी संस्थाए श्रद्दालुओ को खाना, आराम करने के लिये टेंट या पंडाल की व्यवस्था करते है।
यात्रा के रास्ते में 100 से भी ज्यादा पंडाल लगाये जाते है, जिन्हें हम रात में रुकने के लिये किराये पर भी ले सकते है।
निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी दी जाती है।
यात्रा के रास्ते में 100 से भी ज्यादा पंडाल लगाये जाते है, जिन्हें हम रात में रुकने के लिये किराये पर भी ले सकते है।
निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी दी जाती है।
हर हर महादेव | जय बाबा बर्फानी | जय बाबा अमरनाथ
ॐ नमः शिवाय